दिवाली की प्राचीन कथा – Ancient tale of diwali

DIWALI KI PRACHEEN KATHA – ANCIENT TALE OF DIWALI
दीपोत्सव पर्व अथवा दिवाली क्यों मनाई जाती है? इसके पीछे कई कहानियां हैं, कई परंपराएं हैं। कहते हैं कि त्रेता युग में भगवान श्री राम अयोध्या में प्रकट हुए थे। उनकी सौतेली मां कैकई के वचन की वजह से श्री राम को 14 वर्ष के वनवास के लिए अयोध्या से बाहर वन में भेज दिया गया था और कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को ही श्री राम लक्ष्मण और माता सीता वन से वापस लौट कर अयोध्या आये थे।
श्री राम के आगमन की खुशी में अयोध्यावासियों ने अमावस्या की काली रात का अंधेरा दूर कर त्योहार की तरह मनाने के लिए अयोध्या में दीपक जलाए थे। माना जाता है कि तब से ही दिवाली के दिन दीपमाला बनाने की परंपरा चली आ रही है।
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दूसरी कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध करके प्रजा को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई तो द्वारका की प्रजा ने दीपक जलाकर उनको धन्यवाद दिया।
भारतीय संस्कृति में दीपक को सत्य और ज्ञान का द्योतक माना जाता है, क्योंकि वो स्वयं जलता है, पर दूसरों को प्रकाश देता है। दीपक की इसी विशेषता के कारण धार्मिक पुस्तकों में उसे ब्रह्मा स्वरूप माना जाता है।
जहां सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंच सकता है, वहां दीपक का प्रकाश पहुंच जाता है। दीपक को सूर्य का भाग ‘सूर्यांश संभवो दीप:’ कहा जाता है।
धार्मिक पुस्तक ‘स्कंद पुराण’ के अनुसार दीपक का जन्म यज्ञ से हुआ है। यज्ञ देवताओं और मनुष्य के मध्य संवाद साधने का माध्यम है। यज्ञ की अग्नि से जन्मे दीपक पूजा का महत्वपूर्ण भाग है।
दीपावली के दिन माता महालक्ष्मी की आराधना का विशेष महत्व होता है। बताया जाता है कि प्राचीन काल में जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन चल रहा था।
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उस दौरान कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को समुद्र से देवी लक्ष्मी प्रकट हुए थीं। तब से हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को दीपावली मनाने की परंपरा शुरू हुई। ऐसी मान्यता है कि दीपावली के दिन जो व्यक्ति सच्चे मन से माता महालक्ष्मी की आराधना करता है उसके घर में हमेशा धन-धान्य और बरकत रहती हैं।
दीपावाली पूजन विधि :–
एक चौकी लें। उस पर सफेद रंग का कपड़ा बिछाएं। अब उस पर माता महालक्ष्मी, माता सरस्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
अब हाथ में जल लेकर उसे प्रतिमा पर निम्न मंत्र पढ़ते हुए छिड़कें।
ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।।
माता पृथ्वी को प्रणाम करते हुए निम्न मंत्र पढ़ें –
पृथ्विति मंत्रस्य मेरुपृष्ठः ग ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मोदेवता आसने विनियोगः॥
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥
इसके बाद ‘ॐ केशवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः, ॐ माधवाय नमः’ कहते हुए गंगाजल या जल का आचमन करें।
हाथ में जल लेकर दिवाली की लक्ष्मी पूजा का संकल्प लें। संकल्प के लिए हाथ में चावल, फूल और जल लें। साथ ही एक रूपए का सिक्का लें।
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फिर संकल्प करें कि – मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान, समय पर माता लक्ष्मी, माता सरस्वती और भगवान गणेश की पूजा करने जा रहा हूं, जिसका मुझे शास्त्रों के अनुसार फल प्राप्त हों।
अब भगवान गणेश, माता महालक्ष्मी और माता सरस्वती के मंत्रों का जाप करें। इसके बाद माता महालक्ष्मी की सच्चे मन से आरती करें। साथ ही भगवान गणेश की भी आरती करें। फिर उन्हें फल और मिठाइयों का भोग लगाकर पूजा संपन्न करें।
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