आइये जानते हैं भगवान स्वामी नारायण के बारे में | Swami Narayan Ke Baare Me
कौन थे स्वामी नारायण जो आगे चलकर अपनी पहचान विश्व स्तर तक बनाये क्यूँ कहा जाता है।
इन्हें नीलकंठ वर्णी जिनके नाम पर दुनिया का सबसे भव्य मंदिर बना भगवान स्वामी नारायण का जीवन परिचय पर प्रकाश डालते हैं।
इनके जन्म के समय जब ज्योतिषियों ने देखा तो इनके हाथ और पैर पर ब्रज सुधर्म रेखा और कमल का निशान बना हुआ है ।
उसी समय भविष्यवाणी हुई की यह बच्चा सामान्य नही है|
आने वाले समय में करोडो लोगों के जीवन परिवर्तन में इसका अहम रोल रहेगा।
स्वामी नारायण के बारे में:-
भगवान स्वामी नारायण हिन्दू धर्म के स्वामी नारायण सम्प्रदाय के संस्थापक थे |
इन्हें सहजानंद स्वामी के नाम से भी जाना जाता है।
शिक्षापत्री स्वामी नारायण सम्प्रदाय का मुख्य और पवित्र ग्रन्थ है इस ग्रन्थ में 212 श्लोक संस्कृत भाषा में है और यह ग्रन्थ भगवान स्वामी नारायण द्वारा रचित है।
इन्हें अवतारी पुरुष और इश्वर का स्वरुप माना जाता है |
इनके अवतारों के संकेत कई पुरानो में भी मिलते हैं |
मात्र ११ वर्ष की आयु में घर त्याग कर भारत भ्रमण पर निकल पड़े यही से नीलकंठ वरनी की कहानी का शुभारम्भ हुआ।
इनके बचपन का नाम घनश्याम था।
जन्म तिथि 3 अप्रैल 1781 जन्म स्थान उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के छपिया नामक गाँव में जो की अयोध्या से 30 किमी की दूरी पर स्थित है।
पिता का नाम धर्मदेव माता का नाम भक्ति देवी भाई राम प्रताप मृत्यु तिथि 1830 है।
Also Read:- अयोध्या का धार्मिक महात्म्य – RELIGIOUS SIGNIFICANCE OF AYODHYA
एक दिन इनके पिता धर्मदेव ने घनश्याम के अभिरुचि एवं प्रतिभा का परिक्षण किया।
उन्होंने एक जगह एक स्वर्ण मुद्रा एक चाक़ू एक गीता का पुस्तक रख दिया।
उस समय घनश्याम की आयु बहुत कम थी।
पिता जी ने घनश्याम को अपने समीप बुलाया और और उस वस्तुओं में से एक को चुनने को कहा।
उससे पहले ही घनश्याम से गीता की पुस्तक को अपने हाथ में उठा लिया।
यह देखकर उनके पिताजी आश्चर्यचकित हो गये।
घनश्याम की शिक्षा 10 वर्ष की आयु में अपने पिता से वेद उपनिषद गीता रामायण व महाभारत आदि का अध्ययन पूर्ण कर लिया।
उनके अंदर जितनी ही विद्या ग्रहण करने की शक्ति थी उससे भी अच्छी अभिव्यक्ति की शक्ति थी।
जिसे देखकर बड़े बड़े विद्वान अश्र्य्चाकित हो जाते थे।
बालक घनश्याम ने कम आयु में ही वाल्ल्याविद्या में कुचलता प्राप्त कर ली थी 11 वर्ष की औ में ही इनके माता पिता का देहांत हो गया।
और 11 वर्ष की उम्र में 1792 में ये घर से निकल पड़े उस रात बहुत बारिश हो रही थी।
घर से निकलने के बाद घनश्याम ने अपनी पहचान बदल डाली।
नीलकंठ ब्रम्हचारी के नाम से प्रसिद्द हो गये चलते चलते श्रीनगर पहुचे और वहां पहुचते साम हो चुकी थी।
साम को गाँव में जाना उचित नही समझा और गाँव के बाहर एक मठ था।
उसी के पास एक पेड़ के नीचे ही आसन लगाकर ध्यान में बैठ गये बट के समीप एक जंगल था।
वहां एक शेर रहता था जिसे के डर की वजह से रात में कोई बाहर नही निकलता था।
गाँव और मठ के सभी लोग डरते थे।
घनश्याम अपने ध्यान में थे तभी शेर दहाड़ते हुए निकला मठ के महंत ने जब खिड़की खोल के देखा तो पेड़ के नीचे एक बालक बैठा हुआ था।
शेर बालक को देखकर गुर्राता रहा और फिर पालतू जानवर की तरह उनके समीप बैठ गया |
बालक ने शेर के शिर पे हाथ फेरा और शेर कुछ घंटे उनके समीप बैठा रहा |
ये सब देखकर महंत आश्चर्यचकित थे और समझ गये ये बालक किसी इश्वर का अवतार है।
महंत जी अपने शिष्यों के साथ बालक से मिलने को दौड़ पड़े और बालक के चरणों में गिरकर बोले।
हे प्रभु अब आप हमारे ही मठ में रहने की कृपा करें राजा की कृपा से मठ के पास सैकड़ों बीघा जमीन है।
बालक ने सहज भाव से कहा सम्पत्ति की अपेच्छा होती तो संसार छोडकर क्यों निकलता।
ऐसे ही इनके तमाम किस्से हैं भगवान स्वामी नारायण का मृत्यु एक सत्य है जिनका जन्म हुआ है।
उसका मृत्यु निश्चित है सन 1830 ई में स्वामी ने नस्वर शरीर का त्याग कर दिया।
और उनकी सोच और दी हुई शिक्षा का प्रचार प्रसार उनके अनुनायी पूरे विश्व में कर रहे हैं।
इनके बताये हुए मार्ग पर चलकर आज भी लोग ज्ञान और अध्यात्म के आनंद में सराबोर होकर विश्व कल्याण में अपना योगदान दे रहे हैं।