पारिजात बृक्ष के बारे में आइये जानते हैं सबकुछ | KNOW MORE ABOUT PARIJAAT TREE

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के सटे जिले बाराबंकी से लगभग 39 किमी दूर किन्तूर गाँव में स्थित इस पेड़ को देखने दूर दूर से लोग आते हैं । मन्नतें भी मांगते हैं | पूजा पाठभी करते हैं । आखिर क्यूँ क्या वजह है की सब इस पेड़ को इतना महत्त्व देते हैं । खैर कुछ वजह तो जरूर होगी की दूर दूर से लोग इस पेड़ के नाम पे खींचे चले आते हैं ।

भारत हमेशा से ही चमत्कारों का देश कहा जाता रहा है यहाँ हर दुसरे कदम पे कोई न कोई चमत्कार देखने को मिलता है । ऐसी मान्यता है की बाराबंकी जिले के किन्तूर गाँव में भारत का एकमात्र पारिजात पेड़ पाया जाता है | इस पेड़ से निकलने वाली फूलों की तुलना सोने से की जाती है ।

पारिजात एक प्रकार का कल्प बृक्ष है कहा जाता है की यह केवल स्वर्ग में होता है । जो इस पेड़ के नीचे मनोकामना करता है वो जरूर पूरी होती है । धार्मिक और प्राचीन साहित्य में हमे इस पेड़ के कई सन्दर्भ मिलते हैं । किन्तु कवक किन्तूर को छोडकर इसके प्रमाण का विवरण कही और नही मिलता है ।

पारिजात बृक्ष (PARIJAAT TREE) का हमारे ग्रंथों से सम्बन्ध:-

हरिवंश पुराण की कथा के अनुसार एक बार नारद जी श्री कृष्ण से मिलने पृथ्वी पर आये नारद जी श्रीकृष्ण के लिए अपने साथ पारिजात के पुष्प उपहार स्वरुप लाये।

जब नारद जी वह फूल श्रीकृष्ण को भेंट किये तब श्री कृष्ण वही फूल साथ बैठी अपनी पत्नी रुक्मणि को दे दिए लेकिन जब सत्यभामा को इसका पता चला तो वो श्रीकृष्ण से नाराज हो गयीं।

श्री कृष्ण के लाख समझाने पर भी वो नही मानी और अपनी लिये बृक्ष लाने के लिए हठ करने लगी।

अंत में श्रीकृष्ण को सत्यभामा की बात माननी पड़ी और उन्होंने सत्यभामा को ये बृक्ष लाने का वचन दिया।

इसके लिए उन्होंने अपने दूत को स्वर्गलोक में भेजा तो इन्द्रदेव ने बृक्ष देने से मना कर दिया और दूत को खली हाथ ही लौटना पडा।

फिर श्रीकृष्ण को गुस्सा आया क्योंकि श्रीकृष्ण के स्वयं के अपमान के साथ सत्यभामा को दिया अपना वचन भी था।

उन्होंने विना देरी किये इंद्र को युद्धकी सूचना भिजवा दी । इसके बाद श्रीकृष्ण ने इन्द्रलोक पर चढ़ाई कर दी।

और युद्ध में श्रीकृष्ण को परास्त करने के बाद पारिजात की जीत लिया ।

तब इंद्र ने क्रोध में आकर श्राप दिया की अबसे इस बृक्ष में फल नही लगेंगे।

धरती लोक पर वापस आकर श्री कृष्ण सत्यभामा की वाटिका में रोपित कर दी।

श्रीकृष्ण का वचन तो पूरा हुआ लेकिन श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को सबक सिखाने के बारे में सोचा।

श्रीकृष्ण ने अपनी लीला से कुछ ऐसा किया जिससे रात्रि में पारिजात पे फूल तो उगते थे पर वो गिरते उनकी पत्नी रुक्मणि की वाटिका में ही।

यही कारण है आज भी उस पेड़ के पुष्प गिरते हैं तो पेड़ के काफी दूर जाकर गिरते हैं।

पांडवों ने लगाया था यह पारिजात बृक्ष:-

कहा जाता है जब पांडव अज्ञातवास भोग रहे थे तो उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के गाँव किन्तूर पहुचे थे।

जहाँ उन्होंने एक शिव मंदिर की स्थापना की जिससे उनकी माता जी अपनी इच्छा अनुसार पूजा अर्चना कर सके।

श्रीकृष्ण के आदेश पर कुंती के लिए पांडवो ने पारिजात को सत्यभामा के वाटिका से पारिजात बृक्ष ले आये थे।

क्योंकि इसके फूलों से माँ कुंती शिव का पूजन करती थीं।

इस पेड़ को गोलाई लगभग 50 फीट और ऊँचाई 45 फीट है |

स्थानीय लोगों के मुताबित इस पेड़ की आयु लगभग 5000 वर्ष है।

इस पेड़ की जांच कई बार वनस्पति वैज्ञानिकों ने की है उन्होंने इसे असाधारण करार किया है।

वनस्पति वैज्ञानिकों के अनुसार इस पेड़ को Adansonia Digitat के नाम से जाना जाता है।

इसे एक विशेष श्रेणी में रखा गया है।

क्यूंकि यह अपने फल व बीज का उत्पादन नही करता है।

यही नही इसकी शाखा या कलम से दूसरा पेड़ नही लगाया जा सकता है।

वनस्पति वैज्ञानिकों के मुताबित यह एक (Unisex Men) पुरुष बृक्ष है | ऐसा कोई पेड़ और कहीं नही मिला है।

इस पेड़ के बारे में एक और ख़ास बात कही जाती है की इसकी शाखाएं टूटी या सूखती नही।

बल्कि पुराणी हो जाने के बाद सिकुड़ती हुई मुख्य तने में गायब हो जाती है।  

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