होली क्यों मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की कहानी ?
आइये जानते हैं होली क्यों मनाया जाता है। इस पूरे आयोजन का अर्थ क्या है। इस अवसर का वास्तविक महत्व क्या है। राजा हिरण्यकश्यप जो असुरो का राजा था । उसने ब्रम्हा जी की उपासना की और बरदान माँगा की उसकी मृत्यु न हो, न घर में, न बाहर न अस्त्र से, न सस्त्र से, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न जल पर, न आकाश पर, न नर से, न देवता से न असुर से, और ये बरदान प्राप्त भी हो गया। इसीलिए होली मनाया जाता है।
हिरण्यकश्यप का अहंकार बढ़ गया: –
बरदान प्राप्त करके बहुत खुश हुआ अहंकार और बढ़ गया अब तो मुझे कोई नही मार सकता।
अब पूरे राज्य में घोषणा कर दी की पूरे राज्य में उसकी ही पूजा होनी चाहिए।
उसके अलावा किसी और की पूजा नही होनी चाहिए।
सारी प्रजा डर से उसकी बात मानने पर मजबूर हो गयी सिवाय उसके पुत्र प्रह्लाद के । प्रह्लाद ने कहा की मै तो विष्णु भगवान की ही पूजा करूंगा।
राजा न बहुत समझाया लेकिन प्रह्लाद नही माने फिर उन्होंने अपनी बहन होलिका को बुलाया कुछ उपाय करने के लिए|
होलिका को भी बरदान प्राप्त था की अग्नि उसका कुछ नही बिगड़ सकती ।
उसने लकड़ी मगाई और दोनों ने विचार किये की लकड़ी जलाकर उसमे प्रहलाद को लेकर बैठ जाउंगी प्रह्लाद जलकर भस्म हो जायेगा और इसको तो बर प्राप्त है कुछ न होने का । लेकिन प्रभु की कृपा से हुआ उसका उल्टा ।
होलिका जलकर रख हो गयी और प्रह्लाद का बाल भी बांका नही हुआ ।
भगवान विष्णु को चैलेंज किया:-
हिरण्यकश्यप को बहुत गुस्सा आया वह क्रोध से विश्छिप्त हो गया । वह लोहे का एक खम्भा गर्म कराया और प्रह्लाद से बोला।
जा पकड़ ले खम्बे को गले लगा ले अब देखता हूँ तेरा विष्णु कैसे बचाता है तुझे।
तो विष्णु पुराण में इसका उल्लेख है जैसे ही प्रह्लाद खम्बे को गले लगते है।
भगवान विष्णु अपने नरसिंह अवतार में प्रकट होते हैं जो आधे सिंह थे आधे नर थे।
हिरण्यकश्यप की तरफ बढ़े उसकी धर दबोचा। गौधुल बेला थी।
न दिन था न रात थी। हिरण्यकश्यप को उठा कर महल की चौखट पर ले गये न घर के अंदर न बाहर|
फिर अपने पंजो से उसका सीना चीर दिए अपने गोद में बिठाकर न धरती पर न आकाश में उसको मरने में भी न अस्त्र का उपयोग किया न शस्त्र का, न नर द्वारा न पशु आधे नर आधे जानवर, सभी शर्तें पूरी हुई हिरण्यकश्यप का वध हुआ।
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श्रध्दा की जीत हुई अहंकार की हार हुई। पूरे राज्य में खुशियाँ ही खुशियाँ एक असुर राजा का अंत हुआ।
तो ये है होली के उत्सव के पीछे की कथा।
एक दिन पहले रात में होलिका दहन होता है।
दुसरे दिन होली का त्यौहार मनाया जाता है उसदिन सब लोग एक दुसरे को अबीर गुलाल रंग लगते हैं।
होली के त्यौहार में गले मिलते हैं और होली की बधाई देते हैं।
घर में पकवान बनता है सबलोग खुशियाँ बिखेरते हैं।
इसीलिए ये त्यौहार खुशियों का त्यौहार है रंगों का त्यौहार है आपसी भाईचारे का त्यौहार है ।
इसदिन लोग आपस में दूरियां विबाद मनमुटाव सब भुलाकर एक दूसरे के गले मिलते हैं रंग लगाते हैं।
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