तीर्थराज प्रयाग में मां गंगा और कल्पवास – MA GANGA & KALPWAS

पंक्ति पावन परिवार कल्पवास एक संकल्प की यात्रा है। इस यात्रा मे त्याग , तप, जप, स्नान, दान और भक्त समागम का पुनीत अवसर मिलता है। नियमानुसार एक माह तक प्रयाग के बाहर नही जाना होता है।
एक समय भोजन होता है और प्रातः सायं गंगा स्नान । व्यवस्था मे सामर्थ्य के अनुसार लोग आते है और नियम का पालन करते हुए दान धर्म का पालन करते हुए कल्पवास पूर्ण करते हैं। यहाँ सबका एक ही लक्ष्य होता है त्याग। सनातन परम्परानुसार हर वर्ष मेले मे लाखों-लाख लोग आते है त्याग करके जाते है।
प्रयाग की महिमा सबसे महान है। माता सीता वनवास जाते समय गंगा जी से निवेदन करती है कि हे माँ ऐसी कृपा कीजिये कि हम सब साथ लौट कर आऊंगी फिर आप का पूजन करूंगी ।
सकुशल लौटती है तब राम से कहती है कि मा गंगा के हम आभारी है कि पुनः दर्शन प्राप्त हुआ। गंगा एक नदी ही नही है, वरन यह भारतीय संस्कृति की संपोषिका, संरक्षिका, संवाहक के साथ साथ संजीवनी भी प्रदान करने वाली शक्तिपुन्ज है।
यहाँ हमारा भी धर्म बनता है कि इस प्रयागराज की धरती पर पहुँच कर पर्यावरण संरक्षण को ध्यान मे रखते हुए गंगाजल मे स्नान करते हुए उसमे गन्दगी न पहुंचाई जाय। इस क्रिया मे सबको एक मत से सहयोग करना चाहिए। इसका परिणाम “सर्वे भवन्तु सुखिनः” को चरितार्थ करने वाला होगा।
कल्पवास की प्रेरणा बचपन से ही मिलनी चाहिए। गंगा शिव की जटाओं से निकली है इस लिए जटाशंकरी कहलाती है। परिणामस्वरूप सत्यं शिवम् सुन्दरम की भावना से कल्याण ही कल्याण दिखाई देता है।सबको आनन्द ही मिलता है।
सबका अधिकार है कि गंगा की कृपा प्राप्त करे, लेकिन माँ गंगा को मांँ मानते हुए अपने अस्तित्व की संरक्षित मानना चाहिए।
प्रयागराज में लगने वाले माघ मेले में कल्पवास की है परंपरा, जानिए क्या है इसका महत्व
प्रयागराज में माघ मेले में कल्पवास करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. ऐसी मान्यता है कि यहां कल्पवास करने से परिवार को मां गंगा का आशीर्वाद मिलता है. संगम नगरी में लगने वाला माघ मेला सनातन धर्म का सबसे बड़ा मेला है.
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