नवरात्रि क्यों मनाया जाता हैं। – NAVRATRI KYON MANATE HAI

आइये जानते हैं हमारे हिन्दू धर्म की सबसे प्रमुख त्यौहार नवरात्रि (Navratri) की।
नवरात्री हिंदू धर्म का एक प्रमुख त्योहार है,
जो देवी दुर्गा की पूजा और शक्ति के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है (NAVRATRI KYON MANAYA JATA HAI)।
इसे साल में दो बार मुख्य रूप से मनाया जाता है – चैत्र नवरात्री (वसंत ऋतु में) और
शारदीय नवरात्रि (Navratri) (शरद ऋतु में), जिसमें शारदीय नवरात्री अधिक प्रसिद्ध है।
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यह त्योहार नौ दिनों तक चलता है, जिसमें माँ दुर्गा के नौ रूपों (नवदुर्गा) की पूजा की जाती है।
दसवां दिन विजयादशमी या दशहरा के रूप में मनाया जाता है।
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नवरात्रि मनाने के पीछे कई धार्मिक और पौराणिक कारण हैं:
असुरों पर विजय: पौराणिक कथाओं के अनुसार, माँ दुर्गा ने नौ दिनों तक महिषासुर नामक राक्षस से युद्ध किया और
दसवें दिन उसका वध कर बुराई पर अच्छाई की जीत हासिल की। नवरात्रि (Navratri) इसी विजय का उत्सव है।
शक्ति की आराधना: यह त्योहार नारी शक्ति और माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों – जैसे शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा
आदि – की पूजा करने का समय है। हर रूप एक विशेष गुण या शक्ति का प्रतीक है।
आध्यात्मिक शुद्धि: नवरात्रि के दौरान लोग उपवास, ध्यान और प्रार्थना करते हैं, जिससे मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है।
यह आत्म-संयम और भक्ति का समय माना जाता है।
ऋतु परिवर्तन: यह त्योहार ऋतुओं के बदलाव के साथ भी जुड़ा है।
चैत्र नवरात्रि वसंत की शुरुआत और शारदीय नवरात्रि शरद ऋतु की शुरुआत का प्रतीक है।
इस दौरान प्रकृति और मानव जीवन में नई ऊर्जा का संचार होता है।
सांस्कृतिक महत्व: नवरात्रि में गरबा और डांडिया जैसे लोक नृत्य, रामलीला का मंचन और दशहरे पर रावण दहन जैसे आयोजन होते हैं, जो इसे सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी खास बनाते हैं।
इस तरह, नवरात्रि भक्ति, शक्ति और उत्सव का संगम है, जो लोगों को एकजुट करता है और जीवन में सकारात्मकता का संदेश देता है।
यह है पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, साल में दो बार नवरात्र मनाए जाने का संबंध भगवान श्रीराम से माना जाता है।
जिसके अनुसार, जब भगवान श्रीराम ने रावण से युद्ध किया और विजय प्राप्त की, तो वह विजयी होने के बाद मां का आशीर्वाद लेने के लिए नवरात्र तक की प्रतीक्षा नहीं करना चाहते थे।
तब उन्होंने माता रानी के निमित्त विशेष पूजा का आयोजन किया।
जिसके बाद से ही नवरात्र का पर्व दो बार मनाया जाने लगा।
जहां शारदीय नवरात्र धर्म की अधर्म पर जीत का प्रतीक है।
वहीं चैत्र नवरात्रि के नवमी पर राम जी के जन्मोत्सव को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है।
प्रकृति भी करती है माता रानी का स्वागत
दरअसल नवरात्र का पर्व साल में दो बार मनाए जाने के पीछे एक नहीं बल्कि कई कारण मिलते हैं।
जिनमें से एक प्राकृतिक कारण भी है, जिसके अनुसार, दोनों ही नवरात्र के दौरान यानी चैत्र और आश्विन माह की अवधि में ऋतु परिवर्तन का समय होता है।
नवरात्र के दौरान न तो मौसम ज्यादा गर्म होता है और न ही ज्यादा ठंडा, अर्थात इस दौरान मौसम काफी सुहावना रहता है।
इसलिए ऐसा माना जाता है कि प्रकृति स्वयं को माता रानी के आगमन के लिए तैयार कर रही है।
वहीं अगर देखा जाए, तो नवरात्र का व्रत हमें प्रकृति में आए इन बदलावों के लिए तैयार करने में मदद करता है।
यह भी है कारण
सनातन शास्त्रों में निहित है कि वर्ष में दो गुप्त नवरात्र मनाए जाते हैं।
वहीं, चैत्र माह में चैत्र नवरात्र मनाया जाता है। जबकि, आश्विन महीने में शारदीय नवरात्र मनाए जाने का विधान है।
दोनों ही नवरात्र (चैत्र और शारदीय) का विशेष महत्व है, लेकिन चैत्र नवरात्र में पूजा के दौरान बलि नहीं चढ़ाई जाती है।
वहीं, शारदीय नवरात्र में मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए बलि भी चढ़ाई जाती है।
हालांकि, यह प्रथा कुछ चुनिदां स्थानों पर ही प्रचलित है।
चैत्र नवरात्र के दौरान नवमी तिथि पर भगवान श्रीराम का अवतरण हुआ है।
इस शुभ अवसर पर रामनवमी मनाई जाती है।
जबकि, शारदीय नवरात्र के अगले दिन भगवान राम ने रावण का वध किया था,
जिसके उपलक्ष्य में दशहरा का पर्व मनाया जाता है।
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